Monday, 10 July 2017

टूटा रिश्ता

~~टूटा रिश्ता~~

"तुम्हें समझ नहीं आता क्या? कितनी बार बोलूं... मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी, ये कोई पहली बार नहीं है, और हां... आगे से कोई फोन वोन मत करना..." इतना कहकर सुनिता ने ठप्प से फोन रख दिया। महेश का हृदय भी एक धक्का खाकर टूट गया। कुछ दिन पहले ही तो सुनिता ने बातचीत वापस शुरू की थी..
     महेश और सुनिता एक साथ पढ़ते थे, 9वीं कक्षा से लेकर तीन महीने पहले तक सब कुछ ठीक था, दोनों की दोस्ती से जलते थे बाकी सब। इतने दिनों तक दोनों ने अपने रिश्ते में कोई गांठ न पड़ने दी। महेश मन ही मन सुनिता को पसंद करता था, सुनिता लेकिन अपनी ही धुन में रहती थी। वह इस डर से कि कहीं सुनिता इन्कार ना कर दें, अपने मन की बात कह नहीं पाता था,एक बार उसने सुनिता के मन की बात जानने की कोशिश की, "सुनिता! प्यार के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?" पर हर बार की तरह सुनिता ने यह कहकर कि "सब फालतू है!" टाल दिया। लेकिन वह खुश था कि कम से कम वो साथ है।
      बीए द्वितीय वर्ष तक का सफर ऐसे ही तय कर लिया था दोनों ने। लेकिन ज़िंदगी एक मोड़ का इंतजार कर रही थी, वह मोड़ मोहन के रूप में आया। मोहन ने आते ही सबके दिलों में जगह बना ली। सबका चहेता बन गया। सुनिता भी धीरे धीरे मोहन की ओर आकर्षित होने लगी। वह हर चीज़ में महेश को स्वयं से आगे लगता, अपनी डेशिंग पर्सनेलिटी और बातचीत करने की कुशलता से वह सुनिता को अपना बनाता गया। जितना मोहन सुनिता के करीब जा रहा था, उतना ही महेश दूर। खुद से दूर जाता देख महेश ने एक दिन सुनिता को यह पूछ लिया कि, "क्या वह उससे प्यार करती है?" सुनिता की आंखों में अंगारे उतर आए, वह महेश को बेइज्जत करके बोली, "अपनी सूरत देखी है..." और उस दिन के बाद महेश से सुनिता न तो मिलती और न ही मिलने की कोशिश करती।
      महेश सुनिता से बात करने को भी तरसने लगा। एक दिन महेश ने सुनिता को फोन लगाया और जैसे ही सुनिता ने उठाया तो वह तपाक से बोल पड़ा, "क्या हम दोस्त नहीं रह सकते?" सुनिता ने भी अनमने तरीके से हां बोल दिया। महेश खुश था। कम से कम बात तो होगी। वह जब भी मौका मिलता, सुनिता से बात करता। सुनिता की अनचाही दोस्ती को वह खास जगह देने लगा। लेकिन वह मन ही मन डरता था कि कहीं फिर से सुनिता नाराज न हो जाये। उसने सुनिता की खुशियों को अपनी खुशियां बना ली। अपने टूटे हुए दिल के टुकड़े उसने सुनिता की खुशियों तले दबा दिए।
     एक दिन महेश जब ज्योग्राफी की क्लास लेकर निकल रहा था तो मोहन आकर उससे बोला, "महेश! क्या थोड़ा वक्त है? मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है!" महेश और मोहन वहीं क्लास में ही बैठ बातें करने लगे। मोहन ने बातों ही बातों में महेश से पूछा, "क्या तुम सुनिता से प्यार करते हो?" महेश ने सुनिता और उसके रिश्ते को देखते हुए कि कहीं सुनिता को दु:ख ना हो, तो मोहन को मना कर दिया। दोनों बातें खत्म कर घर चले आए। लेकिन महेश के मन में वापस वही दर्द उभर आया जब सुनिता के हाथों उसके दिल को टूटने पर हुआ था।
      उसी वक्त को मोहन का फोन महेश के पास आया। मोहन बोला, "और क्या कर रहे हो महेश? मेरी बात का बुरा तो नही माना ना..."
महेश बोला, "नहीं यार!"
मोहन ने मसखरी करते हुए पूछा, "सुनिता की याद आ रही है क्या?"
महेश ने नाराजगी से जवाब दिया, "क्यों...  तुम्हे आनी चाहिए.. मुझे क्यों?"
मोहन ने महेश के मन की बात जानने के लिए झूठ बोलते हुए कहा, "नाराज क्यों होता है यार, मैंने सुनिता से पूछा तो उसने बताया कि तुम उसको पसंद करते थे..!"
महेश को यकीन तो नहीं हो रहा था कि सुनिता ने मोहन को बताया।
महेश ने कहा, "सुनिता ने कहा..? मेरी वजह से तुम दोनों के बीच झगड़ा तो नहीं हुआ ना, देख यार अब ऐसा कुछ भी..." 
महेश के इतना कहने से पहले फोन कट चुका था।थोड़ी ही देर बाद सुनिता का फोन आया और सुनिता गुस्से में बोली, "मैंने कब तुमसे प्यार किया... तुम जैसे अक्खड़ की मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं..!"
इतना कह कर सुनिता ने फोन काट दिया। महेश अब तक नहीं समझ पाया कि हुआ क्या था..  लेकिन इतना जरूर समझ गया कि उसका और सुनिता का टूटा रिश्ता फिर से टूट गया है।
उसने सुनिता को फोन वापस लगाया लेकिन उसका फोन बंद आता रहा...! 
आज तक महेश सुनिता को फोन मिलाता रहता है बस यही बताने को कि वह उसका प्यार नहीं बस... साथ चाहता है।